Hindu Vivah:जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओपी शुक्ला की बेंच ने प्रथम अपील पर सुनवाई करते हुए 39 साल के एक धर्मगुरु द्वारा 18 साल की एक युवती से 5 जुलाई 2009 को आर्य समाज मंदिर में बिना रीति-रिवाज के हिंदू विवाह तो मैरिज सर्टिफिकेट भी किसी काम का नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी…
Lucknow: उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद Highcourt की लखनऊ बेंच ने कहा है कि किसी Hindu का Hindu Vivah रीति-रिवाज के बिना हुआ है तो मैरिज सर्टिफिकेट या आर्य समाज मंदिर से जारी प्रमाणपत्र का भी कोई महत्व नहीं। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने 39 साल के कथित धर्मगुरु द्वारा धोखाधड़ी कर 18 साल की युवती से किए गए कथित विवाह को शून्य घोषित कर दिया है। जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओपी शुक्ला की बेंच ने युवती की ओर से दाखिल प्रथम अपील पर यह आदेश पारित किया। युवती ने अपील में फैमिली कोर्ट लखनऊ के 29 अगस्त 2023 के फैसले को चुनौती दी थी।
युवती का कथित विवाह 5 जुलाई 2009 को हुआ था। उसने Hindu Vivahअधिनियम की धारा 12 के तहत फैमिली कोर्ट में वाद दाखिल कर विवाह को शून्य घोषित करने की मांग की थी। वहीं, कथित धर्मगुरु ने धारा-9 के तहत वाद दाखिल कर वैवाहिक अधिकारों के पुनर्स्थापना की मांग उठाई थी। फैमिली कोर्ट ने दोनों वादों पर एक साथ सुनवाई करते हुए युवती का वाद निरस्त कर दिया था, जबकि कथित धर्मगुरु का वाद मंजूर कर लिया था।
फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए युवती की ओर से दलील दी गई कि प्रतिवादी एक धर्मगुरु है। युवती की मां और मौसी उसकी अनुयायी थीं। 5 जुलाई 2009 को उसने युवती व उसकी मां को बुलाया और कुछ दस्तावेज पर यह कहते हुए हस्ताक्षर करवाए कि अपने धार्मिक संस्थान का सदस्य बनाना चाहता है। फिर तीन अगस्त 2009 को सेल डीड में गवाह बनने के नाम पर रजिस्ट्रार ऑफिस बुलाकर हस्ताक्षर करवाए। कुछ दिनों बाद धर्मगुरु ने युवती के पिता को सूचना दी कि 5 जुलाई 2009 को आर्य समाज मंदिर में युवती से उसका विवाह हो गया है और 3 अगस्त 2009 को पंजीकरण भी हो चुका है। युवती की ओर से कहा गया कि सभी दस्तावेज धोखाधड़ी से बनवाए गए।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह को सिद्ध करने का भार प्रतिवादी धर्मगुरु पर था, लेकिन वह Hindu Shaadi बिना रीति रिवाज के हिंदू विवाह तो मैरिज सर्टिफिकेट भी किसी काम का नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणीअधिनियम की धारा 7 के तहत हिंदू रीति से विवाह होना सिद्ध नहीं कर सका। इस कारण धारा-7 के तहत विवाह सम्पन्न होना नहीं माना जा सकता। यह कहकर हाई कोर्ट ने दोनों का कथित विवाह शून्य घोषित कर दिया।
अधिवक्ता गुरुवार को भी न्यायिक कार्य से रहेंगे विरत
प्रयागराज : Highcourt बार एसोसिएशन ने अधिवक्ताओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले कुछ जजों के आचरण को लेकर असंतोष जाहिर करते हुए गुरुवार को भी न्यायिक कार्य से विरत रहने का संकल्प लिया है। वर्तमान स्थिति के बारे में मुख्य न्यायाधीश को पत्र के जरिये अवगत कराकर यथाशीघ्र कार्यवाही करने की मांग की है। एसोसिएशन ने रजिस्ट्री द्वारा अधिवक्ता रोल नंबर का डेटा प्रदान करने से इनकार करने के बारे में भी अपनी शिकायत उठाई है।